366. दुर्मिला सवैया (आठ x सगण)
जग से मत भाग अरी सखि तू, कछु नाँहि धरो इहि जोगन में।
इहि कारण का अबलौं पगली, बदनाम भयी सब लोगन में।
आपने मन को समझाउ सखी, कछु ना कछु राज वियोगन में।
उनका मन भी कब तृप्त भयो, जिन उम्र गयी रस भोगन में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.06.2017
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जोगन-वैराग्य; इहि-इस; अबलौं-अब तक; लोगन-लोगों; वियोगन-विछोह, विरह; भोगन-भोगने।
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