361. नहिं छंद न छंदक ज्ञान सखे (दुर्मिला सवैया)
आठ सगण (112)
नहिं छंद न छंदक ज्ञान सखे, किस भाँति लिखी तुम यो कविता।
नहिं शब्द दिखें नहिं भाव दिखें, इसको तुम यार कहो कविता।
रसहीन मलीन अगीत लगे, बिन ज्ञान लिखो तुम जो कविता।
कविता तब ही कविता लगती, जब ताल तरंगित हो कविता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2017
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