360. हिंद के किसान की न (कवित्त)
23 दिसंबर - किसान दिवस
हिंद के किसान की न, देखी जाती दशा आज,
सदियाँ गुजर गयीं, वही बुरा हाल है।
चिथड़ों से तन ढके, भूखा - प्यासा लगा रहे,
जनने से मौत तक, जिये फटेहाल है।
दवा-दारू, शिक्षा, दूध, सपनों की बात लगे,
दोनों वक्त नून रोटी, मिलना मुहाल है।
सबका जो पेट भरे, वही विष खाके मरे,
फाँसी पे लटक रहा, किसी को न ख्याल है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
10.06.2017
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जनने-जन्म; नून-नमक; मुहाल-दुष्कर
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