Saturday, June 24, 2017

365. अब बात नहीं कछु काम (दुर्मिला सवैया)

365. दुर्मिला सवैया आठ सगण (112)

अब बात नहीं कछु काम करो, कछु नाहिं धरो इन बातन में।
मत बाँट हमें शुभचिंतक तू, निज धर्मन में निज जातन में।
कुरसी हित में मत घात करे, हित नाहिं दिखे इन घातन में।
अब वाद-विवाद को छोड़ सखे, कछु लाभ न घूँसन-लातन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.06.2017
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बातन-बातों;   जातन-जातियों; नाहिं-नहीं; घातन-घातों; लातन-लातों

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