मापनी - 122 122 122 122
जुबाँ जो मिली तो चलाने लगे हो।
उदंडों सा' ऊधम मचाने लगे हो।।
जहाँ जन्म लीन्हा जहाँ पर पले हो,
वहीं बेल विष की उगाने लगे हो।।
सदा देश को लूटते खाते' आये,
हमें देशभक्ती सिखाने लगे हो।।
बड़े नासमझ हो ये क्या कर रहे हो,
खुदी आग घर को लगाने लगे हो।।
नहीं जुल्म झेला, है' आतंकियों का,
तभी तो हितैषी, बताने लगे हो।।
असल बात है भुक्तभोगी नहीं हो,
तभी पैरवी करने' आने लगे हो।।
अभी तो कहाँ कुछ किया यार मैंने,
अभी से अजी तिलमिलाने लगे हो।।
दगाबाजियाँ सिर्फ करता रहा जो,
उन्हीं के यहाँ आने-जाने लगे हो।।
पिलाकर तुम्हें दूध विषधर बनाया,
हमीं को अरे काटखाने लगे हो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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