Friday, March 18, 2016

225. दोहे- 4 (दस गुरु)

दस गुरु

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर।

पहली  गुरु  माँ  होत  है, दूजा गुरु है बाप।
तीजा गुरु, गुरु होत है, चौथा मेल-मिलाप।
गुरू पाँचवीं  पुस्तकें,  छठवीं  धरणी मात।
नील गगन गुरु सातवाँ, साथ रहे दिन-रात।
बाधाएं  गुरु  आठवीं,  नौवाँ  गुरु  विश्वास।
अनुभव  है दसवाँ गुरू, सदा रहे जो पास।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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पहली  गुरु  माँ  होत  है, दूजा गुरु है बाप।
तीजा गुरु, गुरु होत है, चौथा मेल-मिलाप।
चौथा मेल-मिलाप, धरणि है गुरू  पाँचवीं।
छठवाँ गुरु आकाश, पुस्तकें गुरू  सातवीं।
बाधाएं  गुरु  आठ, और  विश्वास  है नौवाँ।
सदा रहे जो पास, गुरू अनुभव  है दसवाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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