Sunday, March 20, 2016

233. गेहूँ, चना, पक रहे (कवित्त)

घनाक्षरी छन्द

गेहूँ,  चना,  पक   रहे, सरसों  चटक  रही,
कटहल, नीबू  और, आम भी  बौरा  गया।

मधुर   सुगंध   लिए,  मादक   समीर  बहे,
दिल में  उतर  सारा, होश  ही  गुमा  गया।

हियरा उछाल  भरे, चाल  भी  बदल गयी,
तन में शिशिर सखि, आग को लगा गया।

तन  अँगड़ाई  लेत, अंग-अंग  टूटा  जाए,
आली हमें  ऐसा लागे, फागुन है आ गया।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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