Saturday, March 19, 2016

232. चारो ओर छाया फ़ाग (कवित्त)

चारो ओर छाया फ़ाग, तन में लगी है आग,
विरहा में जल रही, और न जलाइये।

अपने पिया के संग, सखी करे हुड़दंग,
आ के मेरी पीर हरो, अंग से लगाइये।।

बस में नहीं है गात, मन भी सुने न बात,
आप में रमा है इसे, आप ही मनाइये।।

याद करूँ दिन-रात, कुछ भी नहीं सुहात,
पिया-पिया बोले जिया, आप चले आइये।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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