Wednesday, June 27, 2018

572. सतयुग भूषण श्रीमान्धाता (मुक्तक)

572. सतयुग भूषण श्रीमान्धाता (मुक्तक)

सतयुग  भूषण  श्रीमान्धाता, रावण  श्रीराम सिधार गए।
दुर्योधन  शकुनी  धृतराष्ट्र,  सबके  छल-बल बेकार गए।
हे  धूर्तमूर्त ! लेकिन तुझको, यह बात समझ नहिं आएगी।
हे  शठ-कामी !  तुझको  लगता, वसुधा  तेरे  सँग जाएगी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2018
*****

मधु-कैटभ  वृत्तासुर  सबके, आसुरी प्रयत्न बेकार गए।
दुर्योधन  शकुनी  धृतराष्ट्र,  वसुधा  के  बिना सिधार गए।
हे  मुंजु!  तुम्हें  फिर  भी  लगता,  यह  साथ तुम्हारे जाएगी।
जब श्रीकृष्ण-बलराम  स्वयं, सब छोड़-छाड़ उस पार गए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2018
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.