563. छिड़ी है मेघ की बूँदों में
छिड़ी है मेघ की बूँदों में जंग चोली पर।
उछलतीं-कूदतीं सब एक संग चोली पर।
रश्क से जल रहा हर एक अंग चोली पर।
फर्क न पड़ रहा कुछ भी मलंग चोली पर।
निगाह जब से पड़ी आके चंग चोली पर।
हिलोर मारती रह-रह तरंग चोली पर।
बिना पिये ही चढ़ी आज भंग चोली पर।
सवार होके है आया अनंग चोली पर।
उठे-उठे से दो उन्मुक्त श्रृंग चोली पर।
कसा हुआ-सा है दीखे मृदङ्ग चोली पर।
रखा है जब से उसने हाथ तंग चोली पर।
तभी से छा रही नूतन उमंग चोली पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.06.2018
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