Friday, June 15, 2018

566. क्या मिलता है सच्चाई में (गीत)

566. क्या मिलता है सच्चाई में (गीत)

सारे घर के स्वप्न अधूरे,
गुणा-भाग में रह जाते हैं।
क्या मिलता है सच्चाई में,
मेरे मुझको समझाते हैं।

देख पड़ोसन के जलवों को,
बीबी रहती रूठी।
कहती रोज दिलासा देते,
रहते मुझको झूठी।
दो हजार की आज तलक तुम,
दिला सके नहिं साड़ी।
खाक दिलाओगे तुम मुझको,
गहने बँगला गाड़ी।

सोच समझ मैं चुप रह जाता,
जब भी ये अवसर आते हैं।

देखो वो चपरासी होकर,
तुमसे अधिक कमाता।
रोज शाम को दो-दो थैले,
गिफ्ट पैक घर लाता।
भाँति-भाँति की मेवाओं से,
किचन पटा रहता है।
काजूबर्फी, फ्रूट, जूस से,
फ्रिज भरा रहता है।

शर्मा जी भी दिवाली पर,
कारें भर-भर कर लाते हैं।

तीसौ दिन की कटापेंच से,
रहता अपना नाता।
कभी-कभी बनिये का वादा,
वादा ही रह जाता।
आते-आते बीस दिनों तक,
वेतन सब खप जाता।
घटा-जोड़कर किसी तरह से,
अंतिम दिन मिल पाता।

हाँ इतना है बेखटके सब,
रोज रात को बतियाते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2018
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