Friday, June 15, 2018

567. सिंह हमेशा सिंह ही रहता (मुक्तक)

567. सिंह हमेशा सिंह ही रहता (मुक्तक)

सिंह हमेशा सिंह ही रहता, पिंजड़े में हो या वन में।
हार नहीं माना करता है, जब तक जान रहे तन में।
आजादी के दो पल बेहतर, सालों की परवशता से।
जो आनंद मुक्त रहने में, वो है नहीं समर्पन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2018
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.