Saturday, June 30, 2018

575. आस लगाए गुजर गए हैं (गीत)

575. आस लगाए गुजर गए हैं (गीत)

आस लगाए गुजर गए हैं,
पूरे सत्तर साल, प्यासे फिर भी हम।
प्यास-बाढ़ पर चर्चाओं में,
उठते रहे सवाल, प्यासे फिर भी हम।

ताल-तलैयों का भी हासिल
हमको नीर नहीं,
सरकारें तो बदल दईं पर
बदली पीर नहीं,
नाम हमारे पर संसद में
होता रोज बवाल, प्यासे फिर भी हम।

सागर पिया, पी लईं नदियाँ
बुझती प्यास नहीं,
कुआँ बावड़ी झीलें पी लीं
अब कुछ पास नहीं,
पीकर सारे गड्ढे-पोखर
ताल पिया भोपाल, प्यासे फिर भी हम।

कहीं बाढ़ में यूपी डूबे
डूबे असम कहीं,
कहीं गांव के गांव डूबते
डूबे रकम कहीं,
लेखपाल पटवारी खाकर,
हो गए मालामाल, प्यासे फिर भी हम।

कहीं-कहीं तालाब खुद रहे,
कहीं लगें नलकूप,
कमरों में पैमाइश होती,
शैली बड़ी अनूप,
जगह-जगह फ़ाइल के भीतर
नहरें दईं निकाल, प्यासे फिर भी हम।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2018
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Friday, June 29, 2018

574. अंग-अंग में मस्तियाँ (कुण्डलिया)

574. अंग-अंग में मस्तियाँ (कुण्डलिया)

अंग-अंग में  मस्तियाँ, देह रूप  की  खान।
चक्षु कसे  तरकश लगें, दृष्टि  मोहिनी बान।
दृष्टि  मोहिनी  बान, हिया में  धँसती  जाए। 
भृकुटी हँस-हँस कहे, इसे अब कौन बचाए।
इतराती  फिर  रही,  कंचुकी  वक्ष  संग  में।
रंग - रूप  लावण्य,  समाया  अंग - अंग में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2018
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573. हमीं हैं वो जिससे जहान चलता है

हमीं हैं वो  जिससे  जहान  चलता है,
हमीं न  हों  दुनिया को कौन  पूछेगा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2018
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Wednesday, June 27, 2018

572. सतयुग भूषण श्रीमान्धाता (मुक्तक)

572. सतयुग भूषण श्रीमान्धाता (मुक्तक)

सतयुग  भूषण  श्रीमान्धाता, रावण  श्रीराम सिधार गए।
दुर्योधन  शकुनी  धृतराष्ट्र,  सबके  छल-बल बेकार गए।
हे  धूर्तमूर्त ! लेकिन तुझको, यह बात समझ नहिं आएगी।
हे  शठ-कामी !  तुझको  लगता, वसुधा  तेरे  सँग जाएगी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2018
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मधु-कैटभ  वृत्तासुर  सबके, आसुरी प्रयत्न बेकार गए।
दुर्योधन  शकुनी  धृतराष्ट्र,  वसुधा  के  बिना सिधार गए।
हे  मुंजु!  तुम्हें  फिर  भी  लगता,  यह  साथ तुम्हारे जाएगी।
जब श्रीकृष्ण-बलराम  स्वयं, सब छोड़-छाड़ उस पार गए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2018
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Sunday, June 17, 2018

571. बाबाओं की गैंग है (कुण्डलिया)

571. बाबाओं की गैंग है (कुण्डलिया)

बाबाओं  की   गैंग  है,  बाबाओं  की  फौज।
सुरा-सुंदरी   संग   में,   रोज   उड़ावें   मौज।
रोज  उड़ावें  मौज, धूर्त   ढोंगी   व्यभिचारी।
लूटपाट  व्यवसाय, हाथ  इन  पर  सरकारी।
राजनीत पर पकड़, दिखे इन आकाओं की।
जिधर  देखिये  उधर,  गैंग  है  बाबाओं की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.06.2018
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Saturday, June 16, 2018

570. जिसने अंतर्मन में झाँका (मुक्तक)

570. जिसने अंतर्मन में झाँका (मुक्तक)

जिसने अंतर्मन में झाँका, वो ही सत्य समझ पाया है।
सबको उतना ही मिल पाया, जितना जीवन मथ पाया है।
अमृत पीकर  इस दुनिया में, कोई  अमर  न   हो  पाया है।
जिसने जहर पिया जग खातिर, वो ही शंकर बन पाया है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.06.2017
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569. सेहत न सुधरी आपकी (युग्म)

569. सेहत न सुधरी आपकी (युग्म)

सेहत न सुधरी आपकी तो मैं क्या करूँ,
मैंने तो चीड़फाड़ में, छोड़ी  कमी  नहीं।

कितनी भी तुम सफाई से, हाथों को धोइये,
रखना मगर  यह याद, खून बोलता भी है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.06.2018
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568. नमन उन्हें है जो (मुक्तक)

568. नमन उन्हें है जो (मुक्तक)

नमन उन्हें है जो जख्मों को स्वयं सीते हैं।
नमन उन्हें है जो चुपचाप  जहर  पीते  हैं।
नमन उन्हें है जो जीवन से भागते हैं नहीं।
नमन उन्हें है जो मर-मर के  रोज जीते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.06.2018
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Friday, June 15, 2018

567. सिंह हमेशा सिंह ही रहता (मुक्तक)

567. सिंह हमेशा सिंह ही रहता (मुक्तक)

सिंह हमेशा सिंह ही रहता, पिंजड़े में हो या वन में।
हार नहीं माना करता है, जब तक जान रहे तन में।
आजादी के दो पल बेहतर, सालों की परवशता से।
जो आनंद मुक्त रहने में, वो है नहीं समर्पन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2018
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566. क्या मिलता है सच्चाई में (गीत)

566. क्या मिलता है सच्चाई में (गीत)

सारे घर के स्वप्न अधूरे,
गुणा-भाग में रह जाते हैं।
क्या मिलता है सच्चाई में,
मेरे मुझको समझाते हैं।

देख पड़ोसन के जलवों को,
बीबी रहती रूठी।
कहती रोज दिलासा देते,
रहते मुझको झूठी।
दो हजार की आज तलक तुम,
दिला सके नहिं साड़ी।
खाक दिलाओगे तुम मुझको,
गहने बँगला गाड़ी।

सोच समझ मैं चुप रह जाता,
जब भी ये अवसर आते हैं।

देखो वो चपरासी होकर,
तुमसे अधिक कमाता।
रोज शाम को दो-दो थैले,
गिफ्ट पैक घर लाता।
भाँति-भाँति की मेवाओं से,
किचन पटा रहता है।
काजूबर्फी, फ्रूट, जूस से,
फ्रिज भरा रहता है।

शर्मा जी भी दिवाली पर,
कारें भर-भर कर लाते हैं।

तीसौ दिन की कटापेंच से,
रहता अपना नाता।
कभी-कभी बनिये का वादा,
वादा ही रह जाता।
आते-आते बीस दिनों तक,
वेतन सब खप जाता।
घटा-जोड़कर किसी तरह से,
अंतिम दिन मिल पाता।

हाँ इतना है बेखटके सब,
रोज रात को बतियाते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2018
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Thursday, June 14, 2018

565. हमारे रहनुमा (मुक्तक)

565. हमारे रहनुमा (मुक्तक)

हमारे  रहनुमा  लफ़्फ़ाजियों  को  रहने  दो।
हमारे  दर्द  को  चुपचाप  हमको  सहने  दो।
एक न  एक दिन  इसका  भी अंत  होना है।
तब तलक घाव को रिसने दो और बहने दो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.06.2018
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Tuesday, June 12, 2018

563. छिड़ी है मेघ की बूँदों में

563. छिड़ी है मेघ की बूँदों में

छिड़ी है  मेघ की  बूँदों में  जंग चोली  पर।
उछलतीं-कूदतीं  सब  एक संग चोली पर।
रश्क से जल रहा  हर एक अंग चोली पर।
फर्क न पड़ रहा कुछ भी मलंग चोली पर।

निगाह जब  से पड़ी आके चंग चोली पर।
हिलोर  मारती   रह-रह  तरंग  चोली  पर।
बिना पिये ही चढ़ी  आज भंग  चोली पर।
सवार  होके  है  आया  अनंग  चोली  पर।

उठे-उठे  से  दो  उन्मुक्त  श्रृंग  चोली  पर।
कसा  हुआ-सा है दीखे  मृदङ्ग चोली  पर।
रखा है जब से उसने  हाथ तंग चोली पर।
तभी  से  छा  रही  नूतन उमंग  चोली पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.06.2018
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Sunday, June 10, 2018

561. शबाब शोखियों का (मुक्तक)

561. शबाब शोखियों का (मुक्तक)

सुरूर, शोखियों का  दीखे रंग चेहरे पे।
शबाब-ए-सिंधु में उठती तरंग चहरे पे।
नजर से  बोलिये  ऐसे न पक्षपात करे।
लगे है डर कि न हो जाय जंग चेहरे पे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.06.2018
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561. शबाब शोखियों का (मुक्तक)

शबाब  शोखियों   का  दीखे  रंग  चेहरे पे।
रूप  के  सिंधु  में  उठती   तरंग  चहरे  पे।
नजर से  भूल के थोड़ा भी पक्षपात हुआ।
हमें  है डर  कि  न हो जाय  जंग चेहरे  पे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.06.2018
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560. हमारे नाम पे (मुक्तक)

560. हमारे नाम पे (मुक्तक)

हमारे  नाम  पे   काहे  को  यूँ  बबाल  करो।
हमारे  प्रश्न  पे  हम ही  से तुम  सवाल करो।
जरा-सी बात  पर  नथुने  फुलाने  लगते हो।
हुजूर नाम का कद का तो कुछ ख्याल करो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.06.2018
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Saturday, June 09, 2018

559.अजीब हाल है (मुक्तक)

559. अजीब हाल है (मुक्तक)

अजीब हाल है  बदले सभी के  ढंग यहाँ।
गली के  संग में दिल भी हुए हैं तंग यहाँ।
यहाँ तो  राह के पत्थर भी  पुते धर्मों  से।
कहीं  हरा  तो  कहीं  गेरुआ है  रंग यहाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2018
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558. जिसने गिरना सीख लिया है (मुक्तक)

558. जिसने गिरना सीख लिया है (मुक्तक)

जिसने गिरना सीख लिया है, वो ऊपर उठ पाया है।
जिसने वाणी बेच दयी है, वो क्या-क्या नहिं पाया है।
ऐसे - ऐसे   दोपायों    को,   देखा   है   इस   दुनिया में,
जिनकी  करतूतों  को   लखकर,  शरमाया चौपाया है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2018

दोपाया - दो पैर वाला अर्थात मनुष्य
चौपाया - चार पैर वाला अर्थात जानवर

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558. जिसने गिरना सीख लिया है (मुक्तक)

जिसने गिरना सीख लिया है, वो धनपति हो  जाता है।
जिसने वाणी बेच दयी है, वो क्या-क्या नहिं पाता है।
ऐसे - ऐसे   दोपायों    को,   देखा   है   इस   दुनिया में,
जिनकी  करतूतों   को   लखकर,  चौपाया शर्माता है।

Friday, June 08, 2018

557. हम शासक हैं (मुक्तक)

557. हम शासक हैं (मुक्तक)

हम  राजा  हैं  हम  से मत  तकरार करो।
समझाते  हैं   नीयत  पर   एतवार  करो।
स्वामिभक्ति का चूरन बाँटन वाले कहते।
हम ही भारत हमारी जय जयकार करो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.06.2018
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557. हम शासक हैं (मुक्तक)

हम शासक हैं  हमसे मत तकरार करो।
आँख मूँदकर हम पर तुम एतवार करो।
स्वामिभक्ति का खाय धतूरा  मस्त रहो।
हम ही  हैं भारत  हमरी  जयकार करो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.06.2018
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Sunday, June 03, 2018

555. मेरे दिल को न यूँ तुम (गजल)

555. मेरे दिल को न यूँ तुम (गजल)

मेरे दिल  को न  यूँ  तुम जलाया करो।
इस  तरह  से  इसे  मत  सताया करो।

छोटी-छोटी  सी  बातों  पे क्या रूठना,
दिल के रिश्ते हैं दिल से निभाया करो।

प्रेम  की  ये  डगर  सीधी-साधी  नहीं,
होश में आओ मत  लड़खड़ाया करो।

हैं  तुम्हारी   गली   में   कई   मनचले,
यूँ   खुलेआम  आया  न  जाया  करो।

छत  पे  आकर  के  यूँ चाँदनी रात में,
मुख  से  ऐसे  न  घूँघट  हटाया  करो।

झील में  इस  तरह से  उतरकर  प्रिये,
आग पानी  में तुम  मत  लगाया करो।

ये  छरहरा  बदन,  ये  लचीली  कमर,
खुद को  पागल हवा  से बचाया करो।

क्या पता आइना कब बदल दे नियत,
रोज  ऐसे  न खुद  को  सजाया करो।

हाँ करी है तो यूँ  हिचकिचाते हो क्यों,
हाथ  ऐसे   न  अपना  छुड़ाया  करो।

उम्र कम उस पे कम नौजवानी सनम,
रूठकर  वक्त  यूँ  मत  गँवाया  करो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.06.2018
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दिल है नाजुक बहुत मत सताया करो।
इस  तरह  से  इसे  मत  जलाया करो।