452. उल्लू इक दिन कहा (रोला छंद)
उल्लू इक दिन कहा, मात लक्ष्मी से रोकर।
होता है उपहास, आपका वाहन होकर।
पूजे तुमको जगत, मूर्ख पर मुझको कहता।
मन में यही ग्लानि, वेदना सहता रहता।
नैनन आँसू लिए, कहा माँ कुछ तो करिए।
मैं हूँ तुम्हरा दास, दुक्ख माँ मेरा हरिए।
माँ लक्ष्मी ने कहा, चाहते हो क्या बोलो।
क्या है तुमको कष्ट, पुत्र अपना मुँह खोलो।
तब उल्लू ने कहा, एक दिन मेरा आए।
होय मान - सम्मान, मुझे भी पूजा जाए।
ऐसा करो उपाय, पूर्ण हो जाये आशा।
माता विनती यही, दूर मम करो निराशा।
अच्छा ये है बात, इसी से मुँह है सूजा।
मुझसे दस दिन पूर्व, हर बरस होगी पूजा।
दुष्ट, छिछोरे, कामी, लंपट या हों लुल्लू।
तब से करवाचौथ, दिवस पर पुजते उल्लू।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.11.2017
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