235. होली-14/14
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गगन व्याकुल लगे दिखने, समझ लो फ़ाग आया है।
धरा भी जब लगे सजने, समझ लो फ़ाग आया है।
शिशिर की हो विदाई जब, लगे ऋतुराज की आहट,
हरारत सी लगे बढ़ने, समझ लो फ़ाग आया है।
खुमारी जब लगे छाने, बढ़े जब देह में मस्ती,
हिलोरें मन लगे भरने, समझ लो फ़ाग आया है।
कभी इस फूल के आगे, कभी उस फूल के आगे,
भ्रमर गुंजन लगें करने, समझ लो फ़ाग आया है।
किसी अलि के निवेदन पर, मचलकर जब नई कलिका,
स्वतः ही जब लगे खिलने, समझ लो फ़ाग आया है।
कपोलों पर दिखे सुर्खी, खिले अधरों पे अरुणाई,
झुकी नजरें लगे उठने, समझ लो फ़ाग आया है।
बिना श्रृंगार के पत्नी, लगे प्रतिरूप रंभा का,
रती सी जब लगे लगने, समझ लो फ़ाग आया है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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(पुरानी रचना)
गगन व्याकुल लगे दिखने, समझ लो फ़ाग आया है,
धरा दुल्हन सी जब दीखे, समझ लो फ़ाग आया है।
शिशिर की हो विदाई जब, लगे ऋतुराज की आहट,
हरारत सी लगे बढ़ने, समझ लो फ़ाग आया है।
फिजां रंगीन हो जाये, पवन मदहोश हो जाये,
चराचर जब बहक उट्ठे, समझ लो फ़ाग आया है।
पुराने पीत पातों के, वसन को दूर करके जब,
विटप पर कोपलें फूटें, समझ लो फ़ाग आया है।
सजाकर देह को अपनी, नवेली फूल-कलियों से,
लता जब वृक्ष से लिपटे, समझ लो फ़ाग आया है।
किसी अलि के निवेदन पर, मचलकर जब नई कलिका,
स्वतः पट खोलने लागे, समझ लो फ़ाग आया है।
कभी इस फूल के आगे, कभी उस फूल के आगे,
भ्रमर गुंजन लगें करने, समझ लो फ़ाग आया है।
खुमारी जब लगे छाने, बढ़े जब देह में मस्ती,
हिलोरें मन लगे भरने, समझ लो फ़ाग आया है।
किसी की दृष्टि पड़ने से, चमक आँखों में आ जाये,
कदम नर्तन लगें करने, समझ लो फ़ाग आया है।
करें हुड़दंग जब बच्चे, लिए हाथों में पिचकारी,
कुलाँचें भर उठें बुढ्ढे, समझ लो फ़ाग आया है।
कपोलों पर दिखे सुर्खी, खिले अधरों पे अरुणाई,
नज़र चंचल लगे होने, समझ लो फ़ाग आया है।
बिना श्रृंगार के पत्नी, लगे प्रतिरूप रंभा की,
रती सी जब लगे लगने, समझ लो फ़ाग आया है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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