832. जीवन भर जूझत रहा (कुंडलिया)
जीवन भर जूझत रहा, लेकर खाली पेट।
मरते लाखों का हुआ, उसके शव का रेट।
उसके शव का रेट, लगाते नाच-नाचकर।
किसने कितना दिया, बताते बाँच-बाँचकर।
घड़ियाली ले अश्रु, करें परिक्रमा तन-तन।
कैसी है यह मौत, हाय यह कैसा जीवन।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.08.2019
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