Saturday, September 16, 2017

412. नयनों की ये तिरछी चितवन (मुक्तक)

412. नयनों की ये तिरछी चितवन (मुक्तक)

नयनों की ये तिरछी चितवन, चुप रहकर भी सब बोल रही।
खामोश  दृष्टि  चुपके - चुपके, अंतर्मन  के  पट  खोल रही।
दूधियावर्ण  श्रृंगारित  तन, गति, लय सँग ताल तरंगित हो।
जग को आंदोलित करने को, रति स्वयं  धरा पर डोल रही।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.09.2017
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