412. नयनों की ये तिरछी चितवन (मुक्तक)
नयनों की ये तिरछी चितवन, चुप रहकर भी सब बोल रही।
खामोश दृष्टि चुपके - चुपके, अंतर्मन के पट खोल रही।
दूधियावर्ण श्रृंगारित तन, गति, लय सँग ताल तरंगित हो।
जग को आंदोलित करने को, रति स्वयं धरा पर डोल रही।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.09.2017
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.