Sunday, May 21, 2017

350. मन में उसका वास है (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद

मन  में  उसका वास है, उर में उसका ठौर।
कैसी   ये    बेचैनियाँ,   कैसा   है   ये  दौर।
कैसा है ये दौर, होश कुछ  भी ना  तन का।
तन मन है  मदहोश, नशा छाया यौवन का।
उसकी ही छवि दिखे, गली कूँचे आँगन में।
जब  से वह  चितचोर, बसा है  मेरे  मन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.05.2017
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