Wednesday, May 10, 2017

340. सरकारें आयीं गयीं (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद

सरकारें  आयीं   गयीं,  बदला   नहीं   विधान।
तब भी मरा किसान ही, अब भी मरे किसान।
अब भी  मरे किसान, लाश कफ्फन  को रोये।
कर्णधार    बेफिक्र,    मौजमस्ती    में   खोये।
नहीं  रहनुमा  दिखे,  कौन  की  ओर   निहारें।
सारे   नेता   एक,   एक   सी   सब   सरकारें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
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