Saturday, May 20, 2017

348. पवन बसंती बह रही (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद

पवन  बसंती  देह  में, जगा  रही  अनुराग।
गली-गली  में  प्रीत के, गीत  सुनाए फाग।
गीत  सुनाए फाग, जिया  में  आग लगाये।
विरहा मन  बेचैन, कौन  इसको  समझाये।
मुरझी  काया   लिए,  राह  देखे  लजवंती।
इतनी कहियो जाय, पिया से पवन बसंती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
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