Thursday, May 25, 2017
351. माँझी खुद ही ढो रहा (कुण्डलिया)
Sunday, May 21, 2017
350. मन में उसका वास है (कुण्डलिया)
कुण्डलिया छंद
मन में उसका वास है, उर में उसका ठौर।
कैसी ये बेचैनियाँ, कैसा है ये दौर।
कैसा है ये दौर, होश कुछ भी ना तन का।
तन मन है मदहोश, नशा छाया यौवन का।
उसकी ही छवि दिखे, गली कूँचे आँगन में।
जब से वह चितचोर, बसा है मेरे मन में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.05.2017
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349. नेताओं पर किस तरह (कुण्डलिया)
कुण्डलिया छंद
नेताओं पर किस तरह, करूँ भरोसा मित्र।
चतुर बहुरिया की तरह, इनका दिखे चरित्र।
इनका दिखे चरित्र, काम जो कुछ ना करती।
दिन भर बर्तन पटक-पटक चौका में धरती।
हर दिन करें स्वांग, गली में चौराहों पर।
किस विधि हो विश्वास, दोमुँहें नेताओं पर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
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Saturday, May 20, 2017
348. पवन बसंती बह रही (कुण्डलिया)
347. दिनाँक 5 मई, 2017 की घटना
कुंडलिया छंद
योगी के भी राज में, गुंडे करते मौज।
इनकी अपनी गैंग है, इनकी अपनी फौज।
इनकी अपनी फ़ौज, खौप ना कोई जिसको।
कब दे गाँव जलाय, मार दे कब ये किसको।
जातिधर्म की सोच, ख़त्म बोलो कब होगी।
बातें हो गयीं बहुत, करो कुछ श्रीमन योगी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
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346. मैं तो हरदम ही कहूँगा (मुक्तक)
मैं तो हरदम ही कहूँगा, मैं बड़ा विद्वान हूँ।
पर तुम्हें तो देखना था, मैं फकत इंसान हूँ।
पदवियाँ दे दे तुम्हीं ने, कर दिया ईश्वर मुझे।
मैंने तुमसे कब कहा था, यार मैं भगवान हूँ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.05.2017
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Sunday, May 14, 2017
344. मदर डे पर दो मुक्तक
Saturday, May 13, 2017
343. मधुबाला ने जिस घड़ी (कुण्डलिया)
Wednesday, May 10, 2017
342. आए कई निजाम पर (कुण्डलिया)
कुण्डलिया छंद
आए कई निजाम पर, बदला ना दुर्भाग।
वही भुखमरी रोज की, वही उदर की आग।
वही उदर की आग, वही जूठन लाचारी।
वही रोज दुत्कार, वही हरदिन बेगारी।
सरकारें दी बदल, भाग्य पर बदल न पाए।
वोट दिया है बार, हाथ दुर्दिन ही आए।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
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341. उन्हीं की हो रही बातें
उन्हीं की हो रही बातें, उन्हीं के हो रहे चर्चे।
हमारी इस कमाई से, उन्हीं के चल रहे खर्चे।
उधर की जिंदगी मखमल, दुशाले ओढ़ सोती है।
इधर ईमानदारी पर, फटी सी भी न धोती है।
उन्हें हर भोग हासिल है, उदर की आग क्या जानें।
उन्हें बस स्वार्थ से मतलब, मेरा दुर्भाग क्या जानें।
उन्हें मतलब नहीं कुछ भी, मेरी फूटी कठौती से।
उन्हें तो सिर्फ मतलब है, जमींदारी बपौती से।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
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340. सरकारें आयीं गयीं (कुण्डलिया)
कुण्डलिया छंद
सरकारें आयीं गयीं, बदला नहीं विधान।
तब भी मरा किसान ही, अब भी मरे किसान।
अब भी मरे किसान, लाश कफ्फन को रोये।
कर्णधार बेफिक्र, मौजमस्ती में खोये।
नहीं रहनुमा दिखे, कौन की ओर निहारें।
सारे नेता एक, एक सी सब सरकारें।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
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339. बेटा मरता फ़ौज में (कुण्डलिया)
कुण्डलिया छंद
बेटा मरता फ़ौज में, घर में मरता बाप।
दंगों में पब्लिक मरे, सरकारें चुपचाप।
सरकारें चुपचाप, उदंडों का जयकारा।
भूखे मरें किसान, कौन इनका हत्यारा।
नेता का परिवार, मजे कोठी में करता।
सरहद पर तैनात, रोज इक बेटा मरता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.05.2017
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Saturday, May 06, 2017
338. पीछे से तेरा वार भी (गजल)
पीछे से तेरा वार भी भरपूर नहीं है।
हारा हूँ मगर हौसला ये चूर नहीं है।
हर धर्म जाति देश में मौजूद सूरमा,
दुनिया में सिर्फ एक तू ही शूर नहीं है।
जनता पे जुल्म हुये हैं हर एक दौर में,
चाहे तू बदल दे इसे दस्तूर नहीं है।
अपने गुरूर पर तुझे इतना गुरूर क्यों,
तू भी है एक नार कोई हूर नहीं है।
तेरी मुहब्बतों को सँभाले, हुये है जो,
ये शख्स तेरा यार है, मजदूर नहीं है।
माना कि घर में हैं तेरे सारी सहूलतें,
कैदी की मगर जिंदगी मंजूर नहीं है।
होगा तू खरीदार इस सारे जहान का,
बिकने को मेरी लेखनी मजबूर नहीं है।
आया है जब से तू यहाँ ऊधम मचा हुआ,
तेरा पतन भी यार अधिक दूर नहीं है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.05.2017
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337. आवाज क़त्ल कर सके (मुक्तक)
एक मुक्तक
आवाज क़त्ल कर सके शमशीर नहीं है।
इतनी बुरी तो हिन्द की तक़दीर नहीं है।
इस देश को हर कौम ने सींचा है खूँन से।
भारत किसी के बाप की जागीर नहीं है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.05.2017
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