Sunday, June 30, 2019

786. घर में चूहे कूद रहे हैं (मुक्तक)

786. घर में चूहे कूद रहे हैं (मुक्तक)

देशभक्ति  के  हैं  प्रवक्ता, सूरत मगर भगोड़ों  की।
जो कल तक थे चोर-उच्चक्के, दौलत भरें करोड़ों की।
आज सत्य रिरियाता मिलता, झूठों के दरबारों में।
गधे दुलत्ती  मार रहे हैं, नाल ठुक  रही  घोड़ों की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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786. घर में हैं चूहे कूद रहे (मुक्तक)

घर में  हैं  चूहे  कूद  रहे, मुख  पर  है  बात  करोड़ों की।
कहने को हैं ये  देशभक्त्त, सूरत क्यों मगर भगोड़ों  की।
क्यों हाथ जोड़कर सत्य आज, रिरियाता झूठों के आगे।
चर रहे मजे से  गधे देश, ठुक रही नाल  क्यों  घोड़ों की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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785. ऐसे मुँह मत खोल तू (कुंडलिया)

785. ऐसे मुँह मत खोल तू (कुंडलिया)

ऐसे  मुँह  मत खोल तू, क्या तेरी  मति भ्रष्ट।
पगले अब चुपचाप रह, भूल-भाल हर कष्ट।
भूल-भाल  हर कष्ट, लगा  तू भी  जयकारा।
झंडा-डंडा  पकड़, उन्हीं  का  बन हरकारा।
हाँ जी, हाँ जी, सीख, सीख  ली, मैंने  जैसे।
बेशक खाली उदर, खोल पर मुँह  मत ऐसे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2019
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Saturday, June 29, 2019

784. जब से उनके स्वप्न सँजोए (मुक्तक)

784. जब से उनके स्वप्न सँजोये (मुक्तक)

जब से उनके  स्वप्न सँजोए, उन-सी भई उन में ही ढली है।
तब से कहें सब लाज-शर्म नहिं, घर बाहर यह बात चली है।
बारह महीना अरु तीसौ दिन, सुलगी सदा कंडा-सी जली है।
जिसने सखी सुख-चैन लिया है, कैसे कहूँ  वह प्रीत भली है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.06.2019
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Friday, June 28, 2019

783. मेरी गरीबी तुम्हरे मुख (मुक्तक)

783. मेरी गरीबी तुम्हरे मुख (मुक्तक)

मेरी  गरीबी तुम्हरे  मुख पर, बनकर  के मुस्कान खिली है।
जिस्म जलाया हाड़ गलाये, तलवों की सब खाल छिली है।
सूखी सिकुड़ी देह को ढकने, रोज फटी बनियान सिली है।
घर न मड़ैया, अन्न न पानी, भूख  ज़लालत, मौत मिली है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.06.2019
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Wednesday, June 26, 2019

782. साजन से परमानंद दिया (मुक्तक)

782. साजन से परमानंद दिया (मुक्तक)

साजन ने परमानंद दिया, बदले में सारी शर्म लई  है।
मन में  कुछ भी अफसोस  नहीं, क्या  चीज मिली क्या चीज गई है।
जब से पिय से संपर्क  हुआ, मम देह  सखी कुंदन सी भई है।
उत्साह नया, जज़्बात नए, अनुभूति नई हर बात नई है।

पिय से सखि परमानंद मिला, बदले में सारी शर्म गई  है।
मन  में  कुछ भी  अफसोस नहीं, क्या चीज मिली क्या चीज दई है।
जब से  उनसे  संपर्क  हुआ, मम देह  सखी कुंदन सी भई है
उत्साह नया, जज़्बात नए, अनुभूति नई हर बात नई है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.06.2019
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Saturday, June 15, 2019

781. मिल गए तो मिलन को (मुक्तक)

781. मिल गए तो मिलन को (मुक्तक)

मिल गए तो मिलन को तू स्वीकार कर।
चाहे  इनकार  कर  चाहे   इकरार  कर।
तेरी  नजरों  से  घायल  हृदय   है  मेरा।
यह है तुझ पर तू दुदकार या प्यार कर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2019
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780. अब सब सुनने में लगे (कुंडलिया)

780. अब सब सुनने में लगे (कुंडलिया)

अब  सब  सुनने में  लगे, प्रश्न पू छता कौन।
दिल्ली पटना लखनऊ, सबके सब  हैं मौन।
सबके  सब  हैं  मौन, हर  तरफ  है सन्नाटा।
ज्यों शिष्यों को पकड़, गुरू जी ने हो डाँटा।
भूख, गरीबी, रोग, प्यास की बात  हुई कब।
पीट-पीटकर माथ, सभी चुपचाप  हुए अब।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.06.2019
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Tuesday, June 11, 2019

779. जहँ लोग कुलों के नामों पर (मुक्तक)

779. जहँ लोग कुलों के नामों पर (मुक्तक)

जहँ लोग कुलों के  नामों पर, रहते हैं  मद में चूर सखे।
जहँ  नारी  को  कहते  देवी, फिर  भी  रहती मजबूर सखे।
जहँ जातिपाँति जहँ ऊँचनीच, जहँ छुआछूत जहँ आडंबर।
जहँ  मनुज  हीन है  पशुओं  से, उस  धर्म से रहना दूर सखे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.06.2019
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Sunday, June 09, 2019

778. संविधान पर है नहीं (कुंडलिया)

778. संविधान पर है नहीं (कुंडलिया)

संविधान पर है नहीं, जिन्हें तनिक विश्वास।
उनसे  जन-कल्याण की, कैसे रक्खें आस।
कैसे  रक्खें आस, तिरंगा  जिन्हें  न  भाता।
फटफटियों  पर बैठ, झुंड आतंक  मचाता।
सिर्फ झूठ पाखंड, रहे जिनकी  जुबान पर।
वे ही गाल बजाँय, आजकल संविधान पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2019
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777. मिल गए तो मिलन कर लो (मुक्तक)

777. मिल गए तो मिलन कर लो (मुक्तक)

मिल गए तो मिलन कर लो स्वीकार तुम, हाथ को छोड़कर अब न जाना कहीं।

पूछकर देख लो अपने  दिल से  प्रिये, मैं  यहीं  था  अभी  भी   यहीं  हूँ  यहीं।

तुम ही  हो आस में, तुम ही  विश्वास में, तुम ही अहसास में तुम हो हर साँस में।

मेरे तन-मन में तुम, मेरे जीवन में तुम, कौन सी है जगह जिसमें तुम हो नहीं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2019
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Saturday, June 08, 2019

776. भाग्य भू का जगा (मुक्तक)

776. भाग्य भू का जगा  (मुक्तक)

भाग्य भू  का जगा अवतरित जो  हुई।
देह   कंचन   तेरी   दूध   से    है   धुई।
सिंधु, धरती, गगन  सारे  चरणों  में हैं।
कौन  सी  है  जगह  जो  न  तूने  छुई।

खेत,  खलिहान, वन  और  उद्यान  में।
हिम,  नदी,  घाटियों  और   मैदान  में।
प्रेम  को  हर जगह  पल्लवित  तू  करे।
जल में, थल में, मरुस्थल बियाबान में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.06 2019
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Wednesday, June 05, 2019

775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)

775. वंश आगे बढ़ातीं हैं (मुक्तक)

वंश   आगे   बढ़ातीं  हैं   ये  नारियाँ।
दीप बन  जगमगातीं  हैं  ये  नारियाँ।
ईंट-पत्थर से बनता है केवल  मकां।
आ इन्हें घर  बनातीं  हैं  ये  नारियाँ।

प्रेम का  स्रोत  बनकर  बहें  नारियाँ।
प्यार पाकर के खुद ही  ढहें नारियाँ।
जिंदगी भर  निभाती हैं ये  साथ को।
हाथ  छोड़े  नहीं   जो   गहें  नारियाँ।

अपने गम को न अक्सर कहें नारियाँ।
दुःख दिल  में   छुपाए   रहें   नारियाँ।
झिड़कियाँ, गालियाँ,  यातना  बंदिशें।
जन्म से मृत्यु तक  सब सहें  नारियाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.06.2019
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Sunday, June 02, 2019

774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)

774. हिय के भीतर तुम्हें बसाकर (मुक्तक)

हिय के भीतर तुम्हें बसाकर, प्रियतम तुम्हरे  स्वप्न  सजाए।
दर्पण में जब खुद को देखा, हम खुद ही खुद से शरमाए।
तब से उड़ती फिरूँ गगन में, जब से मुझको अंग लगाए।
नश्वर तन की बात करूँ क्या, तुम अवचेतन मन पर छाए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.06.2019
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