Thursday, February 28, 2019

716. ऐसे कैसे छोड़ दूँ (कुंडलिया)

716. ऐसे कैसे छोड़ दूँ (कुंडलिया)

ऐसे   कैसे   छोड़   दूँ,  साथी   तेरा   हाथ।
साँसों का अनुबंध है, जब साँसों के  साथ।
जब साँसों के साथ, देह दिल का हो नाता।
रोम-रोम में बसा, भला क्या  छोड़ा जाता?
जन्मों   का   संबंध, टूटता  है   क्या  ऐसे।
साथी  तेरा   साथ,  छोड़   दूँ   ऐसे   कैसे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.02.2019
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716. ऐसे कैसे छोड़ दूँ (कुंडलिया)

सजनी कैसे  छोड़ दूँ, हाथों  से  यह  हाथ?
साँसों का अनुबंध है, जब साँसों के  साथ।
जब साँसों के साथ, देह-दिल का हो नाता।
रोम-रोम में बसा, भला क्या त्यागा जाता?
जन्मों   का   संबंध,  टूटता  है  क्या  ऐसे?
हाथों से  यह  हाथ, छोड़ दूँ  सजनी  कैसे?

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.02.2019
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Tuesday, February 26, 2019

715. देश स्वच्छ हो स्वच्छ तन (कुंडलिया)

715. देश स्वच्छ हो स्वच्छ तन (कुंडलिया)

देश स्वच्छ हो, स्वच्छ तन, लें  ऐसा संकल्प।
स्वच्छ आचरण कर्म का, कोई नहीं विकल्प।
कोई नहीं विकल्प, रखें  हम  स्वच्छ भावना।
सुंदरतम  हो   सृष्टि, ईश  से   यही  कामना।
केरल या कश्मीर, असम  गुजरात कच्छ हो।
नदियाँ नाले नहर, सभी सँग  देश स्वच्छ हो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.02.2019
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714. .देशभक्ति अब देश में (कुंडलिया)

714. .देशभक्ति अब देश में (कुंडलिया)

देशभक्ति  अब   देश  में, बनी   दुधारू  गाय।
नेता   दुहने   में  लगे, जो  जितना  दुइ  पाय।
जो जितना दुइ पाय,नाम लूँ किसका किसका
दूध दही  घी मूत्र, सभी कुछ  बिकता इसका।
दोहन, संग्रह, भोग, बन गयी  है  प्रवृत्ति अब।
बनी  दुधारू  गाय,  देश  में   देशभक्ति  अब।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.02.2019
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713. देशभक्ति का नाम ले (कुंडलिया)

713. देशभक्ति का  नाम ले (कुंडलिया)

देशभक्ति का  नाम ले, नेता  गाल  बजाँय।
वीरों के  बलिदान पर, उत्सव रोज मनाँय।
उत्सव रोज मनाँय, शर्म नहिं  है आँखों में।
वोट  ढूँढ़ते   फिरें, जवानों  की  लाशों  में।
जंग-जंग चिल्लाँय, प्रदर्शन करें शक्ति का।
झंडा - डंडा  संग, सहारा   देशभक्ति  का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.02.2019
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Sunday, February 24, 2019

712. छंद नियम की पालना (कुंडलिया)

712. छंद नियम की पालना (कुंडलिया)

छंद  नियम  की  पालना, राह  करे  आसान।
लय खुद ही आ जात है, खुद आ जाएं प्रान।
खुद  आ  जाएं   प्रान, दूर  हो  आधी  बाधा।
कथ्य भाव  लालित्य, छंद हो रोचक ज्यादा।
समझें पूर्ण विधान, नहीं  गुंजाइश  कम की।
राह  करे  आसान, पालना  छंद  नियम की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.02.2019
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711. युद्ध कथाएं वन भ्रमण (कुंडलिया)

711. युद्ध कथाएं वन भ्रमण (कुंडलिया)

पुलवामा आतंकी घटना के बाद, कुछ हुआ हो या न हुआ हो पर इतना जरूर हुआ कि सुप्त और सुस्त ओज के कवियों को एक नया मसाला मिल गया। आजकल जिधर देखिए उधर मारकाट की, युद्ध की, उन्माद की बातें हो रहीं हैं।

दो देशों का युद्ध कोई गली-मोहल्ले की लड़ाई नहीं है। युद्ध कितना भयंकर, निर्दयी और क्रूर होता है, यह मैदान में लड़ने वाले जानते हैं। युद्ध की कीमत आगे आनी वाली कई पीढ़ियों को चुकानी पड़ती है। जरा-जरा सी बात पर युद्ध-युद्ध चिल्लाना वीरता नहीं, अपितु अज्ञानता का द्योतक है। युद्ध, पर्वत, जंगल, समुद्र ये सब किस्से कहानियों में ही सुंदर लगते हैं, वास्तव में ये बड़े भयानक, पीड़ादायक और क्रूर होते हैं।

711. युद्ध कथाएं वन भ्रमण (कुंडलिया)

युद्ध  कथाएं  हैं  भलीं, भले  न   होते  युद्ध।
कभी  न  भाएं  पास  से, पर्वत,  रेत, समुद्र।
पर्वत,  रेत, समुद्र, देख  हिरदय  हिल जाते।
भय दुख दर्द विपत्ति, सामने इक सँग आते।
शांति अहिंसा क्षमा, सत्य का  बोध  कराएं।
बस सुनने  में  भली,  लगें  ये  युद्ध  कथाएं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.02.2019
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711. युद्ध कथाएं वन भ्रमण (कुंडलिया)

युद्ध  कथाएं, वन भ्रमण, पर्वत  और समुद्र।
लगें  मनोरम  दूर  से, मगर  निकट  से  रुद्र।
मगर निकट से रुद्र, देख अन्तर  हिल जाते।
भय दुख दर्द विपत्ति, सामने इक सँग आते।
शांति अहिंसा क्षमा, सत्य का  बोध  कराएं।
बस सुनने  में  भली,  लगें  ये  युद्ध  कथाएं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.02.2019
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710. कभी न भाएं पास से (कुंडलिया)

710. कभी न भाएं पास से (कुंडलिया)

कभी  न  भाएं  पास  से,  पर्वत,  युद्ध, समुद्र।
लगें  मनोरम   दूर   से, मगर  निकट  से  रुद्र।
मगर  निकट  से  रुद्र, देख अन्तर  हिल जाते।
भय, दुख, दर्द, विपत्ति, सामने इक सँग आते।
शांति, अहिंसा, क्षमा, सत्य, मिल बोध कराएं।
पर्वत, युद्ध,  समुद्र, पास  से   कभी  न  भाएं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.02.2019
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Saturday, February 23, 2019

709. भूखा, रहता कब तलक (कुंडलिया)

709. भूखा रहता कब तलक (कुंडलिया)

भूखा, रहता   कब  तलक, खाली  उदर  समेट।
आखिर इक दिन हारकर, कफ्फन लिया लपेट।
कफ्फन  लिया   लपेट, सहन  की  भी है सीमा।
मृत्यु  बाद  क्या लाभ, मिले   लाखों  का बीमा।
दूध - दही  ना   सही,  मगर   हो  रूखा - सूखा।
'अनुपम'  कोई  उदर,  रहेगा   कब  तक  भूखा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.02.2019
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Saturday, February 16, 2019

708. दुख है अरु आक्रोश भी (कुंडलिया)

दिनाँक 14.02.2019 को पुलवामा की आतंकी घटना में शहीद हुए जवानों को शत-शत नमन। प्रभु से प्रार्थना है कि वह उनके माता-पिता और परिवार के लोगों को इस विपत्ति की घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करे।

दुःख इस बात का तो है ही कि हमारे इतने सारे जवान शहीद हो गये है। लेकिन इससे भी ज्यादा दुःख और आक्रोश इस बात का है कि जो नहीं होना चाहिए वह बार-बार हो जाता है। हमारे सैनिक, बिना लड़े शहीद जाते हैं, हमारे कैम्पों पर हमला हो जाता है और हम इन घटनाओं की पुनरावृत्ति को नहीं रोक पा रहे हैं। इसी पर एक कुंडलिया छंद।

708. दुख है अरु आक्रोश भी (कुंडलिया)

दुख है अरु आक्रोश भी, मन भी बहुत अधीर।
बिना  लड़े   ही  मर  गए, भारत  माँ  के  वीर।
भारत  माँ  के   वीर, मर  रहे   बार-बार  क्यों।
बार-बार  बच  जाँय, देश  में   गुनहगार  क्यों।
गाल बजाते  जौन, उन्हें  है हासिल  हर  सुख।
मरते  रोज  जवान, हृदय  में  है यह  ही  दुख।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.02.2019
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जाँय-जाते; जौन-जो

707. जीते जी तो छोड़िये (कुंडलिया)

707. जीते जी तो छोड़िये (कुंडलिया)

जीते जी तो छोड़िये, मरकर भी  नहिं जात।
जन्मजात मिलती यहाँ, वो कहलाती जात।
वो कहलाती जात, जात आकर नहिं जाती।
दीमक  के   उनहार, राष्ट  को  रहती खाती।
मानवता  दी   फूँक, जात  के  लगा पलीते।
जात संग  हम मरें, जात के  सँग हम जीते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.02.2019
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Thursday, February 14, 2019

706. अपने कर्मों से (कुंडलिया)

706. अपने कर्मों से (कुंडलिया)

अपने  कर्मों  से   बने, राजा  रंक   फकीर।
कर्महीन  इंसान की, कब  सँवरी  तकदीर।
कब सँवरी तकदीर, आलसी कामचोर की।
कर्मवीर  हर  रात, प्रतीक्षा  करे  भोर  की।
बनता  कौन  महान, भला  जातों-धर्मों से।
राजा   हो   या  रंक, बने  अपने  कर्मों  से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.02.2019
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