Sunday, October 01, 2017

424. दिल लगाना छोड़ दे (गीत)

424. दिल लगाना छोड़ दे (गीत)

मनचलों को देखकर तू,
मुस्कराना छोड़ दे।
हर किसी से इस तरह,
आँखे लड़ाना छोड़ दे।

तन ते'रा अँगड़ाइयाँ,
लेने लगा है आजकल,
दौर ये फिसलन भरा है,
होश में रह तू सँभल।
कुछ नहीं तुझको मिलेगा,
फक्कड़ों की प्रीत से,
सिर्फ जिल्लत ही मिलेगी,
बेमुरव्वत मीत से।

ऐरे-गैरे हर किसी से,
दिल लगाना छोड़ दे।

इस तबस्सुम, इस हँसी पर,
जान जाती है निकल,
देखकर  रंग - रूप   तेरा,
हो रहा अंतर विकल।
बावले  कइयों  हुये  हैं,
इस तेरे परिहास पर।
सैकड़ों ग़ाफिल हुए और,
मिट गए इस हास पर।

इस तरह हर बात पर तू,
खिलखिलाना छोड़ दे।
 
झील के जल में उतरकर,
यूँ उठा-बैठा न कर,
रेशमी भीगे हुए आँचल,
को युँ ऐंठा न कर।
तू मिली जब से मुझे,
दुश्मन हजारों बन गए,
बीसियों मर खप गए हैं,
बीसियों जल-भुन गए।

दिलजलों का इस तरह तू,
दिल जलाना छोड़ दे।

रणवीर सिंह (अनुपम)
01.10.2017
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