Tuesday, October 10, 2017

429. जो प्रीत में हिय को हार गया (मुक्तक)

429. जो प्रीत में हिय को हार गया (मुक्तक)

जो प्रीत में हिय को हार गया, क्या शोक करे क्या हाथ मले।
उछरन की चाह करे क्यों वो, जो प्रेम  के सिंधु में डूब चले।
विरहानल को नहिं जान सके, बेशक दीपक दिन-रात जले।
अनुराग  का  रोग न  छूटत  है, चाहे  छूटें तन  से प्राण भले।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.10.2017
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