Thursday, October 19, 2017

431. क्यों नहीं सबके लिए (मुक्तक)

कभी-कभी यह मन कई प्रश्न करने लगता है। जैसे-हाड़तोड़ मेहनत करने और हर वर्ष लक्ष्मी माँ की पूजा-अर्चना करने पर भी उनकी कृपा गरीबों, किसानों और मजदूरों को  क्यों प्राप्त नहीं होती। किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम, मजदूरों को मज़दूरी क्यों नहीं मिलती। क्यों आलू, प्याज, टमाटर किसान के पास होता तो एक रुपया किलो में भी नहीं बिक पाता जबकि वही शहर में पहुँचकर पचासों रुपया किलो बिकता है।

जहां एक तरफ हर वर्ष हजारों टन खाद्यान्न गोदामों में सड़ जाता है वहीं दूसरी तरफ मेहनतकश लोग जो इस अन्न को पैदा करते हैं, वे और उनके बच्चे भूख से तड़पकर मरते रहते हैं। जब प्रभु अंतर्यामी, त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, अविनाशी है, तो वह इनकी सुध क्यों नहीं लेता उसे किसका भय। उसे रुपयों-पैसों, धन-दौलत, गहनों आदि के संचय की क्या आवश्यकता?

जिन्हें इस सबसे लाभ नहीं हो रहा, उन्हें अपने अन्तरपट खोलने की जरूरत है। सोचो, कहीं कुछ तो गड़बड़ है।
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431. क्यों नहीं सबके लिए (मुक्तक)

क्यों नहीं  सबके लिए,  शुभ  हो  रही  दीपावली।
क्यों  विषमता  देश  में  चहुँओर  है  फूली-फली।
ये बधाई  आपकी  शुभकामना  किस  काम की।
भूख, भय, आतंक, तम से जब घिरी है हर गली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.10.2017
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