426. चली है पिय से (महाश्रृंगार छंद)
चली है पिय से मिलने आज,
कामिनी कर सोलह सिंगार।
अधखिले अधरों पर मुस्कान,
लिए नयनों में स्वप्न हजार।
सिंधु सम गहरे दोनों चक्षु,
लगे भृकुटी ज्यों खिची कमान।
नथनियाँ चूमे दोऊ होंठ,
स्वर्ण झुमकों से शोभित कान।
लगे ग्रीवा कदली की भाँति,
श्वेत मोतिन का गल बिच हार।
शिखर दो बीच मुक्त प्रदेश,
वक्ष गर्वित हो लिये उभार।
कमर केहर सम, कोमल गात,
चले नव हिरनी जैसी चाल।
करधनी दीखे है मदमस्त,
और पायल भी है वाचाल।
विश्व को मोहित करने हेतु,
अवतरित हुई धरा पर आज।
लिए तन, मन में रूप, उमंग,
हुश्न, तरुणाई, यौवन, लाज।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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