432. चाँद निहारे चाँद को (कुण्डलिया)
चाँद निहारे चाँद को, ले उमंग विश्वास।
एक गगन के पास है, एक धरा के पास।
एक धरा के पास, हास अधरों पर साजे।
छलक रहा माधुर्य, देह लावण्य विराजे।
तिमिर रहा ललचाय, खो रहे सुध-बुध तारे।
कर सोलह श्रृंगार, चाँद जब चाँद निहारे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
31.10.2017
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