427. तेरे सम्मुख आ प्रिये (कुण्डलिया)
तेरे सम्मुख आ प्रिये, किसको रहता होश।
विश्व मोहिनी रूप यह, कर देता मदहोश।
कर देता मदहोश, छीन लेता सब सुध-बुध।
रंग - रूप, लावण्य, देख धरती है बेसुध।
जड़-चेतन, आकाश, निहारे जब से यह मुख।
किंकर्तव्यविमूढ़, हुए सब तेरे सम्मुख।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.10.2017
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