Sunday, October 08, 2017

427. तेरे सम्मुख आ प्रिये (कुण्डलिया)

427. तेरे सम्मुख आ प्रिये (कुण्डलिया)

तेरे  सम्मुख  आ  प्रिये,  किसको  रहता  होश।
विश्व  मोहिनी  रूप  यह,  कर   देता  मदहोश।
कर देता  मदहोश,  छीन लेता  सब  सुध-बुध।
रंग -  रूप,  लावण्य,  देख   धरती  है   बेसुध।
जड़-चेतन, आकाश, निहारे जब से  यह मुख।
किंकर्तव्यविमूढ़,    हुए   सब     तेरे   सम्मुख।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.10.2017
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