Sunday, October 08, 2017

428. जा प्रेम की राह बड़ी सूधी (मुक्तक)

428. जा प्रेम की राह बड़ी सूधी (मुक्तक)

जा प्रेम  की  राह   बड़ी  सूधी,   जामें  चतुराई  नाहिं चले।
हाँ  करिके  पग  पीछे  न धरें,  जाने  को  जाए  जान भले।
तुम कौन सा प्रेम को पाठ पढ़ो, सौ लेत हौ, देत में एक खले।
हाँ करवावौ, खुद नाहिं करौ, यही देख जिया दिन-रात जले।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.10.2017
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जा-यह; सूधी-सीधी; जामें- इसमें;

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