Saturday, June 18, 2016

254. भोग की ये दासता (कवित्त)

कवित्त

भोग की ये दासता विलासता को छोड़कर,
जिंदगी में सादगी की, शान होनी चाहिए।

बड़े-बड़े ख्वाब और, बड़ी नीतियाँ ही नहीं,
कर्म  संग सोच भी  महान  होनी  चाहिए।

भिन्न-भिन्न भाषा-प्रांत, भिन्न खानपान किन्तु,
एक  राष्ट्रगान  एक, तान   होनी  चाहिए।

एक  हिंद  देश  और,  एक  संविधान  अब,
एकता  हमारी  पहचान   होनी   चाहिए।।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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