कुण्डलिया
ये बिस्तर की जिंदगी, नहिं उमंग नहिं चाव।
नस्तर सी निशदिन चुभे, करती मन में घाव।
करती मन में घाव, शराफत नोंचे खाये।
गिरें कीच में आय, लाज इनको नहिं आये।
कभी लसलसी लगे, कभी लागे प्रस्तर सी।
जिस्मों का बाजार, जिंदगी ये बिस्तर की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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