Saturday, June 25, 2016

258. धरती पानी के बिना (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

धरती   पानी   के   बिना,  सूख    हुई   बेहाल।
त्राहि त्राहि सब कर रहे, चहुँदिश पड़ा अकाल।
चहुँदिश   पड़ा  अकाल,  अरे  आ   वर्षा  रानी।
प्यासे  जो  मर   रहे,   इन्हें   दे   तू   जिंदगानी।
देख  तुझे   हुंकार   जिंदगी   फिर   से   भरती।
पा    तेरा   सानिध्य,   लहलहा  उठती   धरती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Sunday, June 19, 2016

257. मंचों पर चिल्ला रहें (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

मंचों पर चिल्ला रहे, मिस्टर आमिर खान।
उनको भी  लगने लगा, संकट में  हैं  प्रान।
संकट में हैं प्रान, डरें  खबरों को पढ़ सुन।
भारत नहीं सहिष्षुण, रटें मंचों पर ये धुन।
कायर ओ  कृतघ्न,  शर्म  कर  प्रपंचों पर।
झूठे गाल बजात फिरे  क्यों  तूँ  मंचों  पर।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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256. नेताओं  का  देख  तमाशा (मुक्तक)

नेताओं  का   देख  तमाशा, अह भारत!
चहुँदिश छाई घोर निराशा,  अह भारत!
सुरा    सुंदरी    वंशवाद   में    ये   डूबे।
इनसे क्या करनी है आशा,  अह भारत!

गुंडे चुन-चुन आज आ रहे, अह  भारत!
गधा  पचीसी  रोज  गा रहे, अह भारत!
जंगल, नदियाँ, खेत,खदानों को खाया।
ताबूतों   को   बेच  खा रहे, अह भारत!

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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255. पिता पर्वत सा होता है (मुक्तक)

255. पिता पर्वत  सा' होता है (मुक्तक)

पिता पर्वत-सा  होता  है, पिता  प्राचीर-सा  होता।
पिता  पुरुषार्थ  होता है, पिता  तक़दीर-सा होता।
पिता घर  की  व्यवस्था  है,  पिता  घर  की सुरक्षा है।
पिता एक ढाल-सा होता, पिता शमशीर-सा होता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Saturday, June 18, 2016

254. भोग की ये दासता (कवित्त)

कवित्त

भोग की ये दासता विलासता को छोड़कर,
जिंदगी में सादगी की, शान होनी चाहिए।

बड़े-बड़े ख्वाब और, बड़ी नीतियाँ ही नहीं,
कर्म  संग सोच भी  महान  होनी  चाहिए।

भिन्न-भिन्न भाषा-प्रांत, भिन्न खानपान किन्तु,
एक  राष्ट्रगान  एक, तान   होनी  चाहिए।

एक  हिंद  देश  और,  एक  संविधान  अब,
एकता  हमारी  पहचान   होनी   चाहिए।।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Saturday, June 11, 2016

252. ये बिस्तर की जिंदगी (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

ये  बिस्तर  की  जिंदगी, नहिं उमंग नहिं  चाव।
नस्तर सी निशदिन चुभे, करती  मन  में  घाव।
करती  मन   में   घाव,  शराफत  नोंचे   खाये।
गिरें  कीच  में  आय,  लाज  इनको नहिं आये।
कभी  लसलसी लगे,  कभी  लागे  प्रस्तर सी।
जिस्मों  का  बाजार,  जिंदगी  ये  बिस्तर  की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Friday, June 10, 2016

249. रोटी है मसला यहाँ (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

रोटी  है मसला  यहाँ, इसकी करिये  बात।
मंदिर मस्जिद में  हमें, काहे  को उलझात।
काहे  को उलझात, पेट नहिं इससे भरता।
उदर भरा हो तभी भजन पूजन भी करता।
भूख  समस्या  बड़ी,  शेष  बातें  हैं  छोटी।
भूखों  का  भगवान, सिर्फ  होती  है  रोटी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Thursday, June 09, 2016

248. खाली बातों से नहीं (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

खाली बातों से नहीं, हो सकता  कल्याण।
कब तक खाली पेट में,  फूँकेंगी  ये  प्राण।
फूँकेंगी  ये  प्राण, जोश आएगा कब तक।
राष्टवाद, जयगान, कौन गायेगा कब तक।
धर्मों की जयकार, और  नहिं  होने  वाली।
रोटी है भगवान, उदर  जिनका  है खाली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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247. जिसकी खाली जेब है (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

जिसकी  खाली  जेब  है, वह  जीवन बेकार।
टुकुर-टुकुर  हर  चीज को, देखे  बीच बजार।
देखे  बीच बजार,  मारकर  मन   रह  जाता।
कोसत, खीझत और, भाग्य पर  है झल्लाता।
'अनुपम'   बनो  समर्थ,  बुरी   होती कंगाली।
उसको  पूछे कौन, जेब  हो  जिसकी  खाली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Sunday, June 05, 2016

246. जो वस्त्र बनूँ, तो हो किस्मत

जो वस्त्र बनूँ, तो हो किस्मत,
सीने से उनके लगा रहूँ,
जो धातु बनूँ बंदूकों सँग,
कंधों पर उनके टँगा रहूँ॥

जो चाम बनूँ तो हे हरि मैं,
जूतों में उनके सजा रहूँ,
जो बनूँ अगर ककड़ पत्थर,
उस पगडंडी पर पड़ा रहूँ॥
 
जिस पर मतवाले वीरों की,
टोलियाँ गुजर कर जातीं हों,
या फिर बेखौप शहीदों की,
डोलियाँ गुजर कर जातीं हों॥
रणवीर सिंह (अनुपम)              
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