जय कोठा जय कोठेवाली, जय कोठा जय कोठेवाली॥
तेरे अंतर की पीढ़ा की, अनुभूति नहीं मैं कर सकता,
तेरी तकलीफों का वर्णन, शायद ही कोई कर सकता,
फिर भी जितना मैं समझ सका, है कलम उसे लिखने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जग में नारी के रूप कई, माँ, बहन, भार्या और बेटी,
इक रूप और भी देखा जो, चिपचिपे बिस्तरों पर लेटी,
यह रूप भी, रूप है नारी का, चर्चा जिसकी होने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
प्रेमी बन अंतर में उतरा, रसपान किया, तन, यौवन का,
फिर एक दिवस अभिनय करके, सौदा कर डाला जीवन का,
भोली-भाली नहिं जान सकी, है आज कहाँ जानेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जीवन में हल पल, हर पग पर, नारी ने साथ निभाया है,
पुरुषों पर जब संकट आया, नारी ने उसे बचाया है,
लेकिन इसके बदले नर ने, नारी इक चीज बना डाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
बस उदरपूर्ति के लिए नहीं, कोई सर्वस्व लुटाता है,
बस इसी वजह के लिए नहीं, कोठे पे बैठ कोई जाता है,
कुछ कारण और भी हैं जिससे, नारी की होती बिकवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जग नहीं जानता तूँ क्या है? तूँ नहीं जानती, तूँ क्या है?
दुनियाँ को इतनी समझ कहाँ, वह नहीं जानती तूँ क्या है?
जो समझ मिली मुझको शायद, हर किसी न आनेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जो मान रहा हूँ मैं उसको, मानेगा सभ्य जमाना भी,
तेरे जीवन की महिमा को, जानेगा सभ्य जमाना भी,
गर आज नहीं तो कल, परसों, चेतना इसे आने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जो करे गंदगी वो ऊँचा, जो साफ करे वो नीचा है,
अपने स्वारथ की पूर्ति हेतु, ऐसा पैमाना खींचा है,
ये तुच्छ सोच ही मानव की, है गर्त में ले जानेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
भटके पुरुषों की काम-अग्नि, तूँ ही तो शीतल करती है,
यौवन, रंग-रूप, अदा तेरी, कितनों को जीवन देती है,
वरना इन गृद्धों से दुनियाँ, दो दिन भी न बचनेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
तूँ जैसी है, तूँ जो भी है, जीवन की एक हकीकत है,
महलों की अस्मत की रक्षक, तुझ सी नारी की कीमत है,
नहिं वक्ष उठा कोई चल पाती, इन सड़कों पर चलनेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
कामुक समाज की पीड़ा को, हँस-हँस करके हरना होगा,
मानव हित में विष पीकर भी, यह कर्म तुझे करना होगा,
जिस दिन तूँ इससे विमुख हुई, उस दिन प्रलय आनेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जब मन में अंतर्द्वंद चले, तब याद मेनका को करना,
रम्भा, उर्वशी की तूँ वंशज, ढोंगी पुरुषों से क्या डरना,
तूँ आज आम्रपाली फिर बन, इज्जत, शोहरत, गौरववाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
यह सभ्य समाज ऋणी तेरा, ऋण नहीं चुका सकता कोई,
जग में तेरे उपकारों को, है नहीं भुला सकता कोई,
शत बार नमन, शत बार नमन, करता हूँ हे कोठेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
रणवीर सिंह (अनुपम)
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गीत
जय कोठा जय कोठेवाली, जय कोठा जय कोठेवाली॥
तेरे अंतर की पीढ़ा की, अनुभूति नहीं मैं कर सकता,
तेरी तकलीफों का वर्णन, शायद ही कोई कर सकता,
फिर भी जितना मैं समझ सका, है कलम उसे लिखने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जग में नारी के कई रूप, माँ, बहन, भार्या औ बेटी,
इक रूप और भी देखा जो, चिपचिपे बिस्तरों पर लेटी।
यह रूप भी, रूप है नारी का, चर्चा जिसकी होने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
प्रेमी बन अंतर में उतरा, रसपान किया, तन, यौवन का,
फिर एक दिवस अभिनय करके, सौदा कर डाला जीवन का,
भोली-भाली नहिं जान सकी, है आज कहाँ जानेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जीवन में पग-पग पर देखो, नारी ने साथ निभाया है,
पुरुषों पर जब संकट आया, नारी ने उसे बचाया है,
लेकिन इसके बदले नर ने, नारी इक चीज बना डाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
बस उदरपूर्ति के लिए नहीं, कोई सर्वस्व लुटाता है,
बस इसी वजह के लिए नहीं, कोठे पे बैठ कोई जाता है,
कुछ कारण और भी हैं जिससे, नारी की होती बिकवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जो मान रहा हूँ मैं उसको, मानेगा सभ्य जमाना भी,
तेरे जीवन की महिमा को, जानेगा सभ्य जमाना भी,
गर आज नहीं तो कल परसों, चेतना इसे आने वाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जो करे गंदगी वो ऊँचा, जो साफ करे वो नीचा है,
अपने स्वारथ की पूर्ति हेतु, कैसा पैमाना खीचा है,
ये तुच्छ सोच ही मानव की, है गर्त में ले जानेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
तू जैसी है, तू जो भी है, जीवन की एक हकीकत है,
महलों की अस्मत की रक्षक, तुझ सी नारी की कीमत है,
न वक्ष उठा कोई चल पाती, इन सड़कों पर चलनेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
जब मन में अंतर्द्वंद चले, तब याद मेनका को करना,
रम्भा, उर्वशी की तू वंशज, ढोंगी पुरुषों से क्या डरना,
तू आज आम्रपाली फिर बन, इज्जत, शोहरत, गौरववाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
यह सभ्य समाज ऋणी तेरा, ऋण नहीं चुका सकता कोई,
जग में तेरे उपकारों को, है नहीं भुला सकता कोई,
शत बार नमन, शत बार नमन, करता हूँ हे कोठेवाली॥
जय कोठा जय कोठेवाली...
रणवीर सिंह (अनुपम)
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