Tuesday, January 19, 2016

193. भारत के कृषक की (कवित्त)

कवित्त

भारत के कृषक की, पूँछिये न दशा आज,
सदियाँ गुजर गयीं, वही बुरा हाल है।

चिथड़ों में जीता रहे, रोज हाथ रीता रहे,
खाली पेट रहे और, मन में मलाल है।

सबका जो पेट भरे, वही आज भूखा मरे,
फाँसी पे लटक रहा, किसी को न ख्याल है।

रुपया लगा के इसे, अस्सी पैसे मिलते हैं,
खेती बन गई आज, जान का जंजाल है।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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