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Tuesday, January 05, 2016
187. अधर्मी को सदाचारी (मुक्तक)
मापनी-1222 1222 1222 1222
अधर्मी को सदाचारी, मुझे कहना नहीं आया।
कभी भी संग भ्रष्टों का, मुझे अब तक नहीं भाया।
जिन्हें थी चाह बिकने की, बिके लाखों करोड़ों में।
करूँ क्या यार मैंने इस, हुनर को सीख ना पाया।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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