साँसों में सुगंध लिए, चंदन की गंध लिए,
बहने' लगी है जैसे, ब्यार मरुथल में।
अँखियों में प्रीत लिए, अधरों पे गीत लिए,
आकर समाने लगी, जगत सकल में।
धरती गुलाबी हुई, पवन शराबी हुई,
जाने क्या-क्या घट रहा, एक-एक पल में।
यौवन अपार देख, रूप औ श्रृंगार देख,
मच उठी हलचल, नभ, जल, थल में।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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