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Saturday, August 27, 2016
278. तुम्हारी चाह में कितनो (मुक्तक)
तुम्हारी चाह में कितनो को' भटकते देखा।
गुलों के दिल में एक खार खटकते देखा।
उस समय चाँद ने, जानी है हकीकत अपनी।
जब तुम्हें गाल से, ज़ुल्फों को झटकते देखा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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