ताकती हर आँख को अब, राख होना चाहिए।
हिन्द का हर एक दुश्मन, ख़ाक होना चाहिए।
ये लचीलापन हमारा, ले गया कांधार तक।
एक गलती के लिए, जाना पड़ा गांधार तक।
हो गया संसद पे' हमला, पर रहे खामोश हम।
आज तक चेते नहीं हैं, नींद में बेहोश हम।
ताज भी छोड़ा नहीं, छोड़ा न अक्षरधाम को।
समझता कमजोरियत रिपु, शांति के पैगाम को।
है जरूरत अब पड़ोसी, को कड़े संदेश की।
धैर्य की भी एक सीमा, है हमारे देश की।
अब जरूरी हो गया है, नाश हो इस पंक का।
खात्मा अब है जरूरी, हिन्द से आतंक का।
किस तरह से राजनेता, हो रहे धनवान यूँ।
बाहुबलियों डाकुओं की, बढ़ रही क्यों शान यूँ।
इन सभी की इस तरक्की,का भी' पर्दाफाश हो।
भ्रष्टता, कालाबज़ारी, का यहाँ से नाश हो।
धार्मिक उन्माद का विष, भर रहे हैं रक्त में।
कौन सा अवगुण नहीं है, धर्मगुरुओं, भक्त में।
शत्रु हो जो भी वतन का, वो नहीं अब माफ हो।
है जरूरी हर किसी के, साथ अब इंसाफ हो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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