Saturday, August 20, 2016

276. छेड़िये मत आप यूँ

मापनी-212  2212  212  2212

छेड़िये  मत आप  यूँ  जज्बात  को।
और  सह  सकता नहीं आघात को।

रहनुमा  जिसको समझता  मैं  रहा,
उसने   ही  लूटा   मेरी  बारात  को।

पूँछिये  मत  साथियो  मेरी  व्यथा,
क्या बताऊँ क्या हुआ उस रात को।

माँगने  से  हक़  मिला  करता  नहीं,
आइये  हम  दें  बदल  हालात को।

इक तरफ भोजन फिके तालाब में,
इक तरफ बच्चे बिलखते भात को।

मान  लूँ    कैसे   तुम्हें   मालूम   ना,
जानता  सारा  जहाँ  जिस बात को।

हैं बहुत  मुश्किल यहाँ  पहिचानना,
आदमी  को, आदमी की जात  को।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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