श्रृंगार छंद
सखी री लागो सावन मास।
नहीं कुछ उन बिन आवे रास।
पड़े जब तन पर जल बौछार।
लगे ज्यों बरसत हों अंगार।
विरह की अग्नि जलाती गात।
धधकती हियरा में दिन - रात।
छोड़कर, प्रियतम गए विदेश।
नहीं आया कोई सन्देश।
करे है पिउ-पिउ बन में मोर।
कुयलिया रह - रह करती शोर।
विरह से व्याकुल हूँ बेहाल।
पिया नहिं जानत मेरो हाल।
काह नहिं लेते हो सुधि आय।
रहे पाती से दिल बहिलाय।
बहे नयनों से निशदिन नीर।
सजन कब आय हरोगे पीर।
लगा यह कैसा मुझको रोग।
सहा नहिं जाता और वियोग।
मिलन को मनवा रहत अधीर।
धरूँ अब कैसे आली धीर।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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