कुण्डलिया छंद
मेंहदी काजल से कहे, काहे होत अधीर।
तेरी मेरी एक गति, एक हमारी पीर।
एक हमारी पीर, सजन आ इसे हरेंगे।
लखकर, छूकर, चूम, दर्द सब दूर करेंगे।
यह सुन माहवर कहे, हो रही काहे पागल।
मन मत करो मलीन, अरे ओ मेंहदी काजल।
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.