Wednesday, August 10, 2016

270. प्रेम   है   आराधना (मुक्तक)

मापनी- 2122 2122, 2122 212
(गीतिकाजी गीतिकाजी, गीतिकाजी गीतिका

गीतिका छंद

प्रेम   है   आराधना,  अधिकार   मैं   कैैसे  कहूँ।
दो तनों  की  वासना  को  प्यार   मैं   कैसे  कहूँ।
पश्चिमी  उन्मुक्तता  से   कौन  सा   मैं  ज्ञान  लूँ।
छल-कपट को प्रीत  का, आधार  कैसे  मान लूँ।

मुक्तक

प्रेम   है   आराधना   अधिकार   मैं   कैैसे   कहूँ।
दो तनों  की  वासना  को  प्यार   मैं   कैसे  कहूँ।
त्याग, निष्ठा और  निश्छल भावना को छोड़कर।
छल-कपट को प्रीत  का  आधार  मैं  कैसे  कहूँ।

रणवीर सिंह (अनुपम)

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