Saturday, March 17, 2018

538. प्रेम सरहद पहाड़ों से (मुक्तक)

538.  प्रेम सरहद पहाड़ों से (मुक्तक)

प्रेम सरहद पहाड़ों से कब है रुका, प्रेम  को कैद में रख सका कौन है।
प्रेम अहसास है प्रेम विश्वास है, प्रेम मुखरित नहीं   प्रेम   तो   मौन  है।
प्रेम  वाणी  नहीं  प्रेम  भाषा  नहीं,  प्रेम का    प्रेम-ग्रंथों से  क्या  वास्ता,
प्रेम  परिपूर्ण है, प्रेम  संपूर्ण  है,  प्रेम  बिन     स्वयं भगवान भी पौन है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.03.2018
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