534. लठै लठा है दिख रहा (कुण्डलिया)
लठै लठा है दिख रहा, दिखे न सूत कपास।
कोरी नाचत फिर रहा, झूठी पाले आस।
झूठी पाले आस, बावला भ्रम में उलझा।
बातों से कब भला, भूख का मसला सुलझा।
जानत है बिन दूध, कभी नहिं होत मठा है।
फिर भी बिना कपास, कोरि घर लठै लठा है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.03.2018
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लठ्ठम लठ्ठा दिख रहा, दिखे न सूत कपास।
कोरी नाचत फिर रहा, झूठी पाले आस।
झूठी पाले आस, बावला भ्रम में उलझा।
बातों से कब भला, भूख का मसला सुलझा।
जानत है बिन दूध, कभी नहिं होता मठ्ठा।
फिर भी बिना कपास, कोरि घर लठ्ठम लठ्ठा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.03.2018
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