Wednesday, May 23, 2018

554. विज्ञापन का आजकल(कुण्डलिया)

554. विज्ञापन का आजकल (कुण्डलिया)

विज्ञापन का आजकल, कान फोरुआ शोर।
टीवी, ट्यूटर, नेट  पर,  यह छाया  चहुँओर।
यह  छाया  चहुँओर,  गली  में   चौराहों  में।
हँसी, खुशी, गम, प्रेम, आँसुओं में आहों में।
तंत्र - मंत्र,  ताबीज, यज्ञ  अरु  उद्यापन का।
जिधर देखिये  उधर, खेल  है  विज्ञापन का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.05.2018
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554. विज्ञापन पर आजकल (कुण्डलिया)

विज्ञापन पर आजकल, दिया जा रहा जोर।
टीवी,  ट्यूटर,  नेट  पर, कानफोरुआ  शोर।
कानफोरुआ   शोर,  गली   में   चौराहों  में।
हँसी, खुशी, गम, प्रेम, आँसुओं  में आहों में।
तंत्र - मंत्र,  ताबीज, यज्ञ  अरु  उद्यापन पर।
चहुँदिश झूठ  सवार, दिखे है  विज्ञापन पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.05.2018
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553. पीकर के हरिया मरा (कुण्डलिया)

553. पीकर के हरिया मरा (कुण्डलिया)

पीकर  के  हरिया  मरा, रतनू ,  राम, नरेश।
भीकम, जोधा,  केसरी,  रग्घू   और  गनेश।
रग्घू  और  गनेश,  रामधन  नहिं  बच  पाए।
सिगरे  एकहि  संग, काल  के  गाल समाए।
विधवाएं चिल्लाँय, करेंगे अब क्या जी कर।
मरे  सजनवा  हाय, विष भरी  दारू पीकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.05.2018
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552. दारू पीकर मर रहे (कुण्डलिया)

552. दारू पीकर मर रहे (कुण्डलिया)

दारू  पीकर  मर रहे, निर्धन अनपढ़ लोग।
प्रतिदिन बढ़ता जा रहा, यह चौतरफा रोग।
यह चौतरफा  रोग, दिखाई  हल  नहिं देता।
नागफाँस-सा जकड़, प्राण पल में ले लेता।
पी-पीकर  नौजवां,  हो  गए  सूखे  कीकर।
मरें  सैकड़ों  रोज, विष भरी  दारू  पीकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.05.2018
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Friday, May 18, 2018

551. वो कहते वो डाँट रहे (मुक्तक)

551. वो कहते वो बाँट रहे (मुक्तक)
 
वो  कहते वो  बाँट रहे हैं  लोगों को।
वो  कहते वो  डाँट रहे हैं  लोगों को।
हम  कहते  हैं  तुम  मौसेरे  भाई हो।
दोनों मिलकर काट रहे हो लोगों को।
 
रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.05.2018
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551. वो कहते वो बाँट रहे (मुक्तक)

वो कहते हैं कांग्रेस तो, बाँट रही है लोगों को।
कांग्रेस कहती बीजेपी, डाँट रही है लोगों को।
हम कहते हैं  तुम सारे दल, मौसेरे भाई-भाई।
राजनीत  धीरे-धीरे से, छाँट रही है लोगों को।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.05.2018
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Thursday, May 17, 2018

550. कर्नाटक को देखकर (कुण्डलिया)

550. कर्नाटक को देखकर (कुण्डलिया)

कर्नाटक विधान सभा चुनाव 2018 के परिणाम (भाजपा-104, कांग्रेस-78, जेडीएस-38 अन्य-2) आने के बाद और उसके बाद महामहिम राज्यपाल की ओर से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न्योता मिलने के बाद, हो रही उठा-पटक पर एक कुण्डलिया छंद।

कर्नाटक  को  देखकर, सबके सब हैं मौन।
ड्योढ़ों का कद हो गया, पौवा, अद्दा, पौन।
पौवा,  अद्दा,   पौन,  हुए   सब   धर्माचारी।
जोड़ - तोड़  में  लगे,  छोड़  मर्यादा  सारी।
सत्ता सुख  के  हेतु, खींचतानी  का नाटक।
क्रय-विक्रय  का दर्द, सहेगा अब कर्नाटक।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.05.2018
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549. भोग तुम, मैं भूख हूँ बस (मुक्तक)

549. भोग तुम, मैं भूख हूँ बस (मुक्तक)

भोग तुम, मैं भूख हूँ बस, सिर्फ यह ही द्वंद अपना।
भोगिये  जीवन  विलासी,  लीजिये  आनंद अपना।
किन्तु  काहे  को  तुले  हो,  जानवर  बनने 
को तुम,
यार  सीमा  में  रखो  ये, आचरण स्वच्छंद अपना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.05.2018
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549. भोग तुम, मैं भूख हूँ बस (मुक्तक)

भोग तुम मैं भूख  हूँ बस, सिर्फ ये  ही  द्वंद अपना।
तुम विलासी  जिंदगी  का, लीजिये  आनंद अपना।
किन्तु  काहे  को  तुले  हो,  जानवर  बनने 
पे  तुम,
कुछ तो सीमा में रखो ये, आचरण स्वच्छंद अपना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.05.2018
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Monday, May 14, 2018

548. जब से उसको देखा मैंने (गीत)

548. जब से उसको देखा मैंने (गीत)

जब से उसको देखा मैंने,
व्याकुल है अंतर्मन मेरा।

सूखी काया मुरझाया मुख,
छाती पर चुनरी कसी हुई,
काले मटमैले केशों की,
त्रिपटिया चोटी गसी हुई,
नौनी में हो तल्लीन कहे,
देखो साहब जीवन मेरा।

हाँथों में हँसिया अरु खुरपी,
गोदी  में  दाबे है बच्चा,
लमकत जाबत पगडंडी पर,
कहिं मेड़ कहीं रस्ता कच्चा,
सिर पर भूसे की गठरी को,
कहती जाती यह धन मेरा।

लग जाती भोर से उठकर के,
संध्या तक स्वेद बहाती है,
दिन ढले झोपड़ी में आकर,
चूल्हे में मूड़ अड़ाती है,
कहती यह ही मेरी दुनिया,
इतना-सा है आँगन मेरा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.05.2018
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नौनी - गेहूँ की फसल की कटाई;
मूड़ अड़ाना - किसी काम में लगना

Sunday, May 13, 2018

547. क्या नहीं अब तक किया है

547. क्या नहीं अब तक किया है

क्या नहीं अब तक किया है, इस शहर के वास्ते।
दांव पर खुद को लगाया, इस नगर के वास्ते।

आप जिस पर चल रहे है, इस तरह बेखौफ हो,
बहुत कुछ करना पड़ा है, इस डगर के वास्ते।

जान पाओगे नहीं तुम, किस कदर मैं चाहता,
खुद नजर नीची रखी है, इस नजर के वास्ते।

आजकल इंसान दोयम, जानवर अब्बल हुआ,
कौन हक की बात करता, अब बशर के वास्ते।

मत मुझे सिखलाइये तुम, रहबरी है चीज क्या,
जान तक देते लुटा हम, इक शजर के वास्ते।

जोड़कर परिवार रखना, है नहीं आसान अब,
टूटकर जुड़ना है' पड़ता, रोज घर के वास्ते।

आज मुझको रोकिए मत, बस यही है इल्तिजा,
आज मैं निकला सफर पर, इक सफर के वास्ते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.05.2018
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