Sunday, October 04, 2015

108 श्वेत चीर  धारणी माँ (कवित्त)

कुछ  घनाक्षरी

सरस्वती  वंदना (कवित्त)

श्वेत चीर धारणी माँ, श्वेत हंस वाहिनी माँ,
मातु मेरे हृदय को, श्वेत कर दीजिए।।

दूर अँधियारा करूँ, जग में उजारा करूँ,
एक-एक शब्द में माँ, ज्योति भर दीजिए।।

सच को मैं सच लिखूँ,  दृढ़ता से लिख सकूँ,
लेखनी में मेरी ऐसी, धार धर दीजिए।।

सच मूल मंत्र रहे, लेखनी स्वतन्त्र रहे,
देना है तो मातु मुझे, यही वर दीजिए।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

107 लूट कर दिल ले गई है

लूटकर,  दिल ले गई है, मुस्कराहट आपकी।
कर गयी बेहाल मुझको, मुस्कराहट आपकी।।

कुछ नहीं है याद तब से, भेंट जब से है हुई,
होश सारा ले गई है, मुस्कराहट आपकी।।

आपकी बातों में पड़ना, चाहता था ही नहीं,
किन्तु दिल को भा गई है, मुस्कराहट आपकी।।

कौन सी खूबी दिखी इस, सिरफिरे में ये बता,
दे रही है जो निमंत्रण, मुस्कराहट आपकी।।

आज तक खुद्दारियों पर, जो बड़ा मगरूर था,
कर गई लाचार उसको, मुस्कराहट आपकी।।

सच कहूँ तो यार हम तो, बिक गए बेदाम के,
और क्रय जिसने किया वो, मुस्कराहट आपकी।

काम जो तलवार तीरों, से हुआ अब तक नहीं,
कर गई वो काम सारे, मुस्कराहट आपकी।।

आपकी मदहोश नज़रें, हैं क़यामत ढा रहीं,
मोहनी बन छा गई है, मुस्कराहट आपकी।।

सौंप डाला आज खुद को, यार तेरे हाथ में,
अब जियाये या मराये, मुस्कराहट आपकी।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

106. जब से है देखा तुझे (कवित्त)


जब से है देखा तुझे, तब से न होश मुझे,       
समझा रहे हैं लोग, दवा-दारू लीजिये।।

कितने गुजारे साल, अब तो बुरा है हाल,
कुछ तो रहम करो, कुछ तो पसीजिये।।

मिलो तो सुकून मिले, मन का प्रसून खिले,
मुरझा हुआ है दिल, कुछ ख्याल कीजिये।।

मन में उछाल वही, अब भी सवाल वही, 
चाह तेरे हाथ की है, लीजिये या दीजिये।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

105 "पता तुमको चलेगा तब"

मापनी-1222   1222    1222   1222

रहोगे साथ में कुछ दिन, पता तुमको चलेगा तब।
हमारा कद कहाँ तक है, पता तुमको चलेगा तब।।

हमारी अहमियत है क्या, तुम्हें मालूम ना लोगो,
चला जाऊँगा' दुनियाँ से, पता तुमको चलेगा तब।।

बड़ी मगरूर रहती हो, पुते चहरे के' ऊपर तुम,
हटाकर देखिए मेकप, पता तुमको चलेगा तब।।

अदाएं चीज क्या होतीं, किसे सौन्दर्य कहते हैं,
मिलोगो यार से मेरे, पता तुमको चलेगा तब।।

नहीं है मतलबी दुनियाँ, न मतलब के सभी साथी।
मिलेगा आदमी मुझसा, पता तुमको चलेगा तब।।

अभी ईमान भी जीवित, अभी ईमानदारी भी,
मिलो इक बार मुझसे तो, पता तुमको चलेगा तब॥

गुमां ये श्रेष्ठता का तुम, सदा को भूल जाओगे,
पड़ेगा हम से' जब पाला, पता तुमको चलेगा तब।।

तुम्हीं हो सिर्फ काबिल ये, नजरिया हम बदल देंगे,
घड़ी भर जो मिलो हमसे, पता तुमको चलेगा तब॥

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

104. तुमने न भूख देखी

तुमने न भूख  देखी, देखा न  बेकली  को,
देखा कभी न मेरी, जीवन की' बेबसी को,
नारे न  तुम लगाओ, हमको न यूँ बनाओ,
देखा करीब से है, हमने भी' ज़िन्दगी को।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

103. डिजिटल अपना भारत होगा

डिजिटल अपना भारत होगा, यह सुन मन हर्षाता है।
लेकिन इन कोरे नारों  से, भोजन  उदर  न  पाता  है।
कारें,   टीवी,  कम्प्यूटर  से,   कैसे  भूख  मिटाओगे।
कौन बटन रोटी का  इसमें,  आकर  हमें  बताओगे।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

102 तेरी आँख का गर इशारा न होता

मापनी-122   122    122    122

ते'री आँख का जो इशारा न होता।
हमें ये जहाँ फिर गवारा न होता।।

मे'रे आँसुओं की ही' तासीर है ये,
नहीं तो समुन्दर ये' खारा न होता।।

अगर हम से' आशिक न होते यहाँ पर,
हसीनों तुम्हारा गुजारा न होता।।

किसे देखती आँख मल-मल के' दुनियाँ?
अगर तुमको' हमने निखारा न होता।।

हमीं से तुम्हारे जहाँ में है' रौनक,
हमारे बिना ये नज़ारा न होता।।

कयामत धरा पर कभी यूं न आती,
अगर हुश्न को यूँ सँवारा न होता।

अरे नासमझ डूबना चाहता क्यों?
मुहब्बत में कोई किनारा न होता।।

यहाँ चाक दिल खुद ही' सिलना पड़ेगा,
सिवा इसके कोई भी' चारा न होता।।

ते'री बात 'अनुपम' अगर मान लेता,
हुआ हादसा फिर दुवारा न होता।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****