772. आप करें तो (मुक्तक)
आप करें तो संस्कार कहलाता है।
और करे तो तुम्हें नहीं यह भाता है।
हम मर जाएं तो चर्चा भी ना होती।
आप छींक दें समाचार बन जाता है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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772. आप करें तो (मुक्तक)
आप करें तो संस्कार कहलाता है।
और करे तो तुम्हें नहीं यह भाता है।
हम मर जाएं तो चर्चा भी ना होती।
आप छींक दें समाचार बन जाता है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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771. गाँधी जी गायब हुए (कुंडलिया)
गाँधी जी गायब हुए, जय - जय नाथूराम।
जिससे भी जब लाभ हो, उसका लीजे नाम।
उसका लीजे नाम, स्वार्थ को सिद्ध करे जो।
उन्हें रोज गरिआउ, देशहित हाय मरे जो।
इधर-उधर चहुँओर, चले हिंसा की आँधी।
जय हो नाथूराम, कर दिए गायब गाँधी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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771. गाँधी जी गायब हुए (कुंडलिया)
गाँधी जी गायब हुए, जय-जय नाथूराम।
जिससे भी जब लाभ हो, उसका लीजे नाम।
उसका लीजे नाम, स्वार्थ को सिद्ध करे जो।
उसमें ढूँढ़ों वोट, देशहित रोज मरे जो।
मारकाट छल-छंद, चली हिंसा की आँधी।
जय हो नाथूराम, कर दिए गायब गाँधी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.05.2019
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769. नदियों पर कुछ दोहे:
सागर, सरिता से कहे, काहे होत अधीर।
तेरी मेरी एक गति, एक हमारी पीर।
नदियाँ झीलें वाबड़ी, कुएं हुए जलहीन।
उस पर हम उत्थान की, बजा रहे हैं बीन।
जो थीं जीवनदायनीं, वे अब मरणासन्न।
अति जलदोहन से हुईं, नदियाँ सभी विपन्न।
मानव की करतूत से, सरिताएं बरबाद।
सड़तीं लाशें पन्नियां, कूड़ा-करकट गाद।
नदियों के उद्धार की,जिन-जिन से थी आस।
उनने ही दीन्हा दगा, मन में यह संत्रास।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.05.2019
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767. जब नेताओं की भाषा यों (मुक्तक)
जब नेताओं की भाषा यों, नीचे को गिरती जाएगी।
वीरों की लाशों पर चहुँदिश, जब राजनीत की जाएगी।
बोलो फिर कैसे भेजेंगी, सेना में माँएँ बच्चों को,
जिनके बेटों को मरने पर, हँस-हँस गाली दी जाएगी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.05.2019
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766. माँग मुखौटों की चौतरफा (मुक्तक)
माँग मुखौटों की चौतरफा, दर्पण कौन भला अब लेगा।
जिसका बिकता झूठ धड़ाधड़, मेरा सत्य भला कब लेगा।
कलई जैहै उतर एक दिन, भेद मुलम्मा का भी खुलियै।
कंचन के फिर दिन आएंगे, देखेंगे वह क्या तब लेगा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.05.2019
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765. जिधर देखिए उधर मिलेंगे (मुक्तक)
जिधर देखिए उधर मिलेंगे, भारत के भीतर दो भारत।
एक भूख में तड़प रहा है, एक यहाँ किलकोरें मारत।
एक लंगोटी में घूमत है, एक देह पर मलमल धारत।
एक फतह पर फतह कर रहा, एक रहा सदियों से हारत।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.05. 2019
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764. मजदूर दिवस पर कुछ दोहे।
भूख प्यास बीमारियाँ, झेले नित व्यवधान।
आज उसी मजदूर पर, देंगें सब व्याख्यान।
मजदूरी आधी भई, ऊपर से अहसान।
फिर से दावा कर रहे, कर देंगे उत्थान।
रहे चूसते जोंक बन, समझा ना इंसान।
आज उसी को कह रहे, यह मेरा भगवान।
जिनने जूतों से अधिक, दिया नहीं सम्मान।
वे ही चरणों में पड़े, आज करें गुणगान।
हँसिया खुरपा फावड़ा, कन्नी तुला कुदाल।
झाड़ू रंदा उस्तरा, समझ रहें हैं चाल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.05.2019
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