664. प्रेम की फसल को (घनाक्षरी)
प्रेम की फसल को उगाने हित साथी मेरे,
दिल की जमीन को मैं, गोड़-गाड़ आया हूँ।
सबसे है बैर लिया, तेरे लिए मेरी प्रिया,
जाति-धर्म बंधनों को, तोड़-ताड़ आया हूँ।
तुझको क्या लगता है, ऐसे जग मान गया,
कितनों के हाथ-मुँह, फोड़-फाड़ आया हूँ।
अब तो लगा ले गले, मुझको ओ मेरी जान!
तेरे लिए घर-द्वार, छोड़-छाड़ आया हूँ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2018
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