Sunday, December 30, 2018

664. प्रेम की फसल को (घनाक्षरी)

664. प्रेम की फसल को (घनाक्षरी)

प्रेम की फसल  को  उगाने  हित साथी मेरे,
दिल की जमीन को मैं, गोड़-गाड़ आया हूँ।

सबसे  है बैर  लिया, तेरे  लिए  मेरी प्रिया,
जाति-धर्म  बंधनों को, तोड़-ताड़ आया हूँ।

तुझको क्या लगता है, ऐसे जग  मान गया,
कितनों के हाथ-मुँह, फोड़-फाड़  आया हूँ।

अब तो लगा ले गले, मुझको ओ मेरी जान!
तेरे   लिए   घर-द्वार, छोड़-छाड़  आया  हूँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2018
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