Saturday, December 08, 2018

656. अर्जुन प्रण हो या दसरथ (मुक्तक)

656. अर्जुन प्रण हो या दसरथ (मुक्तक)

656. अर्जुन प्रण हो या दसरथ (मुक्तक)

छः दिसंबर के बाद, आज एक बात समझ में आई कि बड़े पदों पर आसीन व्यक्तियों को बड़ी बात बहुत सोच-विचारकर करनी चाहिए। खासकर तब, जब कोई प्रण लेने जा रहे हों। क्योंकि "प्राण जाँय पर वचन न जाही" को निभाना सबके बूते की बात नहीं।

अर्जुन प्रण हो या दसरथ प्रण, प्रण साधारण बात नहीं।
सोच समझकर बात किया कर, बात सिर्फ है बात नहीं।
उतनी ही  थूका-थाकी  कर, जितने  को  तू  चाट सके।
प्राण जाँय पर वचन न जाए, सब में  यह औकात नहीं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.12.2018
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